भोपाल में रविवार को विश्व संग्रहालय दिवस के अवसर पर कई प्रदर्शनियों का आयोजन किया गया। इन्हीं में एक बेहद खास प्रदर्शनी रही, जिसमें 38,000 से अधिक माचिसें और 40 से ज्यादा देशों की मुद्राएं (नोट) प्रदर्शित की गईं। माचिस को आमतौर पर हम रोजमर्रा की जिंदगी की एक सामान्य वस्तु मानते हैं, लेकिन 'माचिस मैन' के नाम से मशहूर सुनील कुमार भट्ट ने इसे एक बेहतरीन संग्रह का रूप दे दिया है।
40 साल से माचिसें जमा कर बच्चों को कर रहे प्रेरित
पिछले 40 सालों से माचिस संग्रह कर रहे सुनील के पास आज देश-विदेश की 38,000 से अधिक माचिसों का अनूठा कलेक्शन है। सुनील कुमार कई स्कूलों और कॉलेजों में प्रदर्शनी लगाकर बच्चों को इस रोचक संग्रह के बारे में जागरूक करते हैं। उनके संग्रह में दुनिया की सबसे छोटी और सबसे बड़ी माचिस भी शामिल है।
माचिसों में छिपे सामाजिक संदेश
सुनील कुमार के पास ‘जल है तो कल है’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ जैसे कई सामाजिक जागरूकता फैलाने वाले संदेशों वाली माचिसें हैं। वह मानते हैं कि माचिस केवल जलाने का साधन नहीं, बल्कि एक संदेशवाहक भी हो सकती है।
बिना कोई माचिस खरीदे तैयार किया संग्रह
सबसे दिलचस्प बात यह है कि सुनील कुमार ने यह माचिसें कभी खरीदी नहीं। उन्होंने इसे अन्य पुराने कलेक्टरों से प्राप्त किया है। उनके पास 17 ऐतिहासिक सेट्स हैं जिनमें से कई माचिसें कॉइन और मास्क जैसे खास विषयों पर आधारित हैं।
40 से ज्यादा देशों की करेंसी
वहीं, रामगोपाल ठाकुर ने बताया कि उन्होंने 1978 से स्कूली शिक्षा के दौरान ओंकारेश्वर में सिक्के और पुराने नोटों को इकट्ठा करना शुरू किया और आज उनके पास देश-विदेश की दुर्लभ करेंसी का अद्भुत संग्रह है। रामगोपाल ने बताया कि बचपन में उन्हें डाक टिकट और माचिस इकट्ठा करने का भी शौक था, लेकिन धीरे-धीरे उनकी रुचि सिक्कों और नोटों के संग्रह में बदल गई।
जुनून जो बना प्रेरणा
रामगोपाल ठाकुर का मानना है कि "यदि व्यक्ति में शौक और धैर्य हो, तो कोई भी चीज़ हासिल की जा सकती है।" उन्होंने बताया कि कोरोना काल के दौरान जब लोग अपने-अपने घरों में सिमटे हुए थे, तब उन्होंने अपने संग्रह को संवारने में समय बिताया।
रामगोपाल ठाकुर का मानना है कि हर व्यक्ति को कोई न कोई शौक जरूर रखना चाहिए, क्योंकि हॉबी व्यक्ति को ज़िंदगी से जोड़े रखती है और उत्साह बनाए रखती है।